
माँ
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Posted on Jan 21, 2022
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By Himanshi
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Published in Poetry
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माँ
एक बार ...
एक कशिश मन में उठी
कि कौन है वो जिसको
माँ कहा संसार ने
जिससे सबसे ऊँचा दर्जा
दिया भगवान ने...
पता चला कि माँ वो है
जिसने बुना जहाँ को प्यार से
इंसानियत क्या है
सबित किया माँ
जैसी इंसान ने...
क्या करती है तो
जानने की कोशिश थी
क्या सहती- क्या कहती
जानने की इच्छा जगी...
पता चला कि जब
धुएँ में तपकर रोटी
बनाती है तो आंख अपनी भिखाती है
वो सहती हैं वो कहती नहीं
जो करती है वो जताती नही
दुःख तो बहुत उन्होंने भी सहे
बताने की कोशिश कर पाती नही
बस यूही
जीवन - भर के फ़र्ज़ को निभाती रही...
फिर ज्ञात हुआ
माँ ही भगवान है
जिसने भगवान को दुख - दर्द - कष्ट
को ह्रदय समा - आँचल में समेट
सभी कर्तव्यों को पूरा किया।
और खुदा के नाम पर
खुद तप कर माँ ने
खुदा को ही बेरोजगार कर दिया...
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Recent comments (5)
G S Sagar-170-24
Nov 29, 2021 Request to DeleteSo sweet Write forward as like it always
Renu Sagar-169-24
Nov 29, 2021 Request to DeleteVery good Keep it up
Manisha-168-22
Nov 29, 2021 Request to DeleteSo Nice yaar... Aise hi likhte raho...
Deepak-167-22
Nov 29, 2021 Request to DeleteSo sweet, you are great please write asike this always.🥰