
महज 15 दिनों के भीतर इन तीन बड़े फैसलों ने 3 राज्यों में बदल दिए bjp के चुनावी समीकरण
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Posted on Dec 02, 2021
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By Deepu news patrka
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Published in News
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देश के पांच राज्यों- यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में होने वाले विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं और माना जा रहा है कि चुनाव आयोग अगले साल की शुरुआत में तारीखों की घोषणा करेगा. इन पांच राज्यों में पंजाब को छोड़कर बाकी चार राज्यों में बीजेपी की सरकार है और भगवा खेमा अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए पूरी ताकत से काम कर रहा है. इस बीच, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बीजेपी चुनाव से पहले ही तीन ऐसे मास्टर स्ट्रोक चला चुकी है, जिसके बाद बाकी पार्टियां चुनाव प्रबंधन में काफी पीछे हैं.
साल 2020 के अंत में जब पंजाब से बड़ी संख्या में किसान कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर बैठ गए, तो भाजपा के लिए पंजाब का रास्ता बहुत मुश्किल हो गया। किसान आंदोलन के आगे बढ़ने के साथ ही मीडिया में सिखों की भाजपा से नाराजगी की खबरें आने लगीं। हालांकि बीते दिनों पंजाब कांग्रेस में हंगामे के बीच जब पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह ने अलग होकर अपनी नई पार्टी बनाने का ऐलान किया तो बीजेपी ने माहौल को भांपते हुए करतारपुर कॉरिडोर खोलने का ऐलान कर दिया. इस एक फैसले से जहां भाजपा के प्रति सिखों की नाराजगी कम हुई, वहीं पार्टी यह संदेश देने में भी कामयाब रही कि राजनीतिक मुद्दों के अलावा वह सिखों की धार्मिक भावनाओं का भी सम्मान करती है। इसे भाजपा का सफल प्रबंधन कहा जाएगा कि करतारपुर कॉरिडोर खोलने के फैसले के साथ ही पार्टी ने पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ गठबंधन को लेकर भी कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।
केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर एक साल से अधिक समय से चल रहा किसान आंदोलन यूपी चुनाव में एक बड़े कारक के रूप में देखा जा रहा था. हाल ही में जब किसान संगठनों ने वेस्ट यूपी के मुजफ्फरनगर में एक बड़ी रैली की थी, तो चर्चा थी कि इस बार वेस्ट यूपी में बीजेपी की राह बहुत मुश्किल होगी। लेकिन, जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा की, तो राजनीतिक परिदृश्य एक बार फिर बदल गया। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कृषि कानूनों की वापसी से भले ही किसानों की नाराजगी कम न हो लेकिन पश्चिम यूपी में बीजेपी को अब वही विरोध नहीं झेलना पड़ेगा. इसके साथ ही बीजेपी चुनाव में इस बात को भी जोरदार तरीके से उठाएगी कि कृषि कानूनों की वापसी के बाद भी अगर किसानों का आंदोलन जारी रहा तो इसके पीछे विपक्ष की राजनीति है. ऐसे में कृषि कानूनों की वापसी को बीजेपी के बड़े दांव के तौर पर देखा जा रहा है.
उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में पेश किए गए देवस्थानम बोर्ड के गठन के बिल को लेकर बीजेपी को शुरू से ही विरोध का सामना करना पड़ रहा था. इस मामले को लेकर चार धाम के पुरोहित संगठन जहां खुलकर भाजपा और राज्य सरकार के विरोध में उतर आए थे, वहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने में देर नहीं की. इसकी पहली झलक तब मिली, जब पीएम मोदी के केदारनाथ दौरे से पहले ही केदारनाथ धाम में बीजेपी के दो दिग्गज नेताओं को पुजारियों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा था. ऐसे में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा चुनाव से पहले सियासी माहौल को भांप लिया और देवस्थानम बोर्ड बनाने के बिल को वापस लेने का ऐलान कर दिया. उत्तराखंड के राजनीतिक जानकार भी इस बात से सहमत हैं कि सीएम धामी ने विपक्ष के हाथ से एक बड़ा मुद्दा छीन लिया है. क्योंकि अगर चुनाव के दौरान देवस्थानम बोर्ड का मुद्दा उठता तो निश्चित तौर पर इससे बीजेपी को काफी नुकसान हो सकता था.
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